Tuesday, January 14, 2014





Aahar

साधारणत हम सोचते है कि भोजन आहार है /लेकिन आहार के और व्यापक अर्थ है /आहार का मूल अर्थ है , जो भी बहार से भीतर लिया जाये / भोजन एक आहार है क्योकि भोजन को हम बाहर  से भीतर लेते है /लेकिन आँख से भी हम निरंतर चीजो को भीतर ले रहे है वह भी आहार है /  कान से भी हम चीजो को भीतर ले रहे है वह भी आहार है/ जो भी शरीर बाहर से रिसिव करता है वो सब आहार है /दो तरह के आहार हो सकते है /ऐसा आहार जो प्राणो को उतेजित करे शांत नही, आंदोलित करे पागल बनाये  हम ऐसे ही आहार लेते है /एक आदमी शराब पि लेता है तो फिर प्राण पागल होकर पदार्थ के लिए भटकेंगे /शराब अकेली उत्तेजक नही है जब कोई आँख से गलत चीज देख लेता है तो भी उतनी ही उतेजना आ जाती है /अब एक आदमी फ़िल्म देख रहा है/ तीन  घंटे से उतेजित आहार ले रहा है /रस्ते पर आप निकलते है कुछ भी पढ़ते चले जाते है/  इसकी फ़िक्र किये बिना के आँखे भोजन ले रही है /रस्ते भर के पोस्टर पढ़ते है /अब यह कचरा भीतर उपद्रव खडा करेगा /लेकिन हम ये सोचते है कि हम तो पढ़ रहे है ,ऐसे ही खाली बैठे है / खाली बैठे है तो कंकड़ पत्थर क्यों नही खा लेते फिर पता चलेगा कैसी तकलीफ होती है पेट में ,ऐसी ही तकलीफ दिमाग में भी होती है /जो राजस व्यक्ति है वो ऐसा भोजन पसंद करेगा जिससे उतेजना आये , जो आलसी व्यक्ति है वो ऐसा भोजन पसंद करेगा जिससे नींद आये और जो संतुलित व्यक्ति है वो ऐसा भोजन करेगा जो सात्विक हो न ज्यादा ठंडा न ज्यादा गरम /हमारा शरीर निश्चित ही पुरा भोजन से निर्मित होता है जो भी हम खाते है उससे शरीर बनता है /हम जानवरो का मॉस खाते है तो उसका कुछ हिस्सा हमारे शरीर को निर्मित करेगा /हमारा शरीर कठोर होता चला जायेगा और धीरे धीरे उसके गुण हमारे अंदर आने शुरु हो जायेंगे/शाकाहारी भोजन हमारे शरीर को एक फ्लक्सिब्लिटी (लोच) देता है /दूसरा, सात्विक भोजन जो सिर्फ हमें ऊर्जा देता है न कि adiction  /  सात्विक भोजन केवल शरीर कि मांग पूरी करता है /आँख से जो उतेजना आती है वो सबसे खतरनाक है ,अमेरिका के साइक्लोजिस्ट कहते है कि जब तक फिल्मो में अस्लील द्रश्य दिखाई देंगे तब तक न तो कोई पुरुष किसी स्त्री से तृप्त होगा और न ही अपराधो में कमी आयेगी / इसलिए कोशिश करे कि आँख से गलत आहार न लिया जाये 

Wednesday, March 27, 2013

आदमी क्यों आखिर अपने  को दुसरे से तोलता है ? क्या जरुरत है? तुम  तुम जैसे हो ;दूसरा दूसरा जैसा है / यह अड़चन तुम उठाते  क्यों हो ? पोधे नहीं उठाते/ छोटी सी झाड़ी बड़े से बड़े वृक्ष के नीचे निश्चिंत बनी रहती है;वह कभी ये नहीं सोचती की ये वृक्ष इतना बड़ा है / छोटा सा पक्षी गीत गाता रहता है; बड़े से बड़ा पक्षी बैठा रहे,इससे गीत में बाधा नहीं आती है की मैं इतना छोटा  हूँ ,क्या खाक गीत गाऊं !पहले बड़ा होना पड़ेगा/ छोटी सी घास  में भी फूल लग जाते है ; वह फ़िक्र नहीं करती है की इतने-इतने बड़े वृक्षों के नीचे तुम फूल उगाने की कोशिश  कर रही हो ,पागल हुए हो! पहले बड़े हो जाओ फिर फूल लाना/
प्रकृति में तुलना है ही नहीं; सिर्फ आदमी के मन में है तुलना /

Monday, March 11, 2013


                                              jai mata di
                      

Wednesday, February 22, 2012

defination of love

प्रेम- किसी व्यक्ति के लिए तुमने अपने जीवन के सब दरवाजे खुले छोड़ दिए और किसी व्यक्ति ने  तुम्हारे लिए अपने सब दरवाजे खुले छोड़ दिए \ प्रेम का यही अर्थ होता है की दो व्यक्तिओ के बीच अब  छुपाने योग्य  कुछ न रहा \ सब उघडा हुआ \ दो ह्रदय अपने आवरण के बाहर आये, दो ह्रदयो ने एक दुसरे को नग्नता से  देखा , दो ह्रदय एक दुसरे के अंदर  प्रविष्ट हुए और यह प्रेम के द्वारा ही संभव है \ जैसे दो बिन्दुओ के बीच की निकटतम दूरी को रेखा कहते है वैसे ही दो व्यक्तिओ के हृदयों के  बीच की निकटतम दुरी को प्रेम  कहते है \जिसे तुम प्रेम करते हो उसमे आत्मा का बोध होना शुरू हो जाता है /जिसे तुम प्रेम नहीं करते हो वो केवल एक शरीर मात्र रह जाता है /प्रेम का पहला कदम ही जोखिम भरा है इसलिए स्त्रियाँ कभी प्रेम निवेदन नहीं करती, वे प्रतीक्षा करती है की तुम ही निवेदन करो/ जोखिम है बड़ा क्योंकि दूसरा मना कर सकता है / तुम इस योग्य न समझे गए की स्वीकार किये जाओ /प्रेम में खतरा है इसलिए विवाह पैदा हुआ /विवाह होशियारी  है प्रेम से बचने की व्यवस्था है /माँ बाप इंतजाम करते है सीधा निवेदन नहीं करना पड़ता /जैसे तुम किसी के भाई हो किसी की बहिन हो वैसे ही अचानक एक दिन किसी के पति या पत्नी हो जाते हो /उसके लिए तुम्हे जोखिम नहीं उठानी पड़ती /लेकिन जब  जोखिम नहीं उठाया तो सारा जीवन व्यर्थ हो जाता है /इसलिए ये दुस्साहस जरुरी है /विवाह पैदा हुआ ताकि प्रेम से बचा जा सके लेकिन  लोग सोचते है की विवाह प्रेम के लिए है /विवाह के बाद पति पत्नी को आपस में प्रेम हो जाता है,लेकिन  साथ रहने की वजह से/
प्रेम अमृत भी हो सकता है और जहर भी हो सकता है ये तुम पर निर्भर करता की तुम उसे क्या बनाते हो,