Wednesday, March 27, 2013

आदमी क्यों आखिर अपने  को दुसरे से तोलता है ? क्या जरुरत है? तुम  तुम जैसे हो ;दूसरा दूसरा जैसा है / यह अड़चन तुम उठाते  क्यों हो ? पोधे नहीं उठाते/ छोटी सी झाड़ी बड़े से बड़े वृक्ष के नीचे निश्चिंत बनी रहती है;वह कभी ये नहीं सोचती की ये वृक्ष इतना बड़ा है / छोटा सा पक्षी गीत गाता रहता है; बड़े से बड़ा पक्षी बैठा रहे,इससे गीत में बाधा नहीं आती है की मैं इतना छोटा  हूँ ,क्या खाक गीत गाऊं !पहले बड़ा होना पड़ेगा/ छोटी सी घास  में भी फूल लग जाते है ; वह फ़िक्र नहीं करती है की इतने-इतने बड़े वृक्षों के नीचे तुम फूल उगाने की कोशिश  कर रही हो ,पागल हुए हो! पहले बड़े हो जाओ फिर फूल लाना/
प्रकृति में तुलना है ही नहीं; सिर्फ आदमी के मन में है तुलना /

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